मुसलसल युद्ध चलता है कोई
मुसलसल युद्ध चलता है कोई घायल ज़ेहन में है । यूँ मैं ख़ामोश रहता हूँ मगर हलचल ज़ेहन में है । न तुम आईं कभी
मुसलसल युद्ध चलता है कोई घायल ज़ेहन में है । यूँ मैं ख़ामोश रहता हूँ मगर हलचल ज़ेहन में है । न तुम आईं कभी
लफ़्ज़ की चाशनी में घुलेगी नहीं । बेरुख़ी आपकी अब छुपेगी नहीं । पंख कतरे हैं तुमने मेरे प्यार के । बेपरों की ये चिड़िया
ज़िन्दगी दामन जला दे और क्या । हँस पड़ा था ग़म बढ़ा दे और क्या । प्यार की ख़ातिर तना था तीर सा । प्यार
सब गरीब धनवान हैं , सब धनवान गरीब । उल्टी पुलटी चीज़ सब , दुनिया बड़ी अजीब । उनकी हालत हो रही , अंतिम समय
तुम वीणा तुम बांसुरी , तुम रसवंत सितार । तुम हिरदय की स्वामिनी , तुम मेरा गलहार । तुम नदिया रस की भरी , तुम
तुम्हारी राह में फूलों की पंखुरियाँ बिछा दे बस । ख़ुदा तुमको ज़माने भर की ख़ुशियों से नवाज़े बस । महक उठ्ठे तुम्हारी दीद के
यौवन की रुत आ गई , रहिए ज़रा सचेत । फूलेंगे मन प्राण में , अब सरसों के खेत । अभी आप आज़ाद हो ,
नाचे दुनिया बावरी , समय बजाये बीन । बूढ़े घर में क़ैद हैं , बच्चे हुए मशीन । आंखें तेरी श्यामला , ज्यों काजल की
हम बैरागी हो गए , मत अब डोरे डाल । खारा पानी मन हुआ , नहीं गलेगी दाल । मुखड़ा उस मासूम का , जैसे
उम्र बस थोड़ी बची है काम बाक़ी हैं बहुत । एक था आग़ाज़ पर अंजाम बाक़ी हैं बहुत । यूँ रिहा हूँ अब मैं तेरी