चेहरे कितने रूपहरे
बस एक चेहरा थाबेशक रूपहरा थाकोई खास किरदार नहींचेहरा भ्रांत,क्लांत,अशांतकिसी परिभाषा में नहींचेहरा जिस परसंवेदना का रेखांकन नहींएक छवि भर हैचेहरे का कोई चरित्र नहींचेहरा
बस एक चेहरा थाबेशक रूपहरा थाकोई खास किरदार नहींचेहरा भ्रांत,क्लांत,अशांतकिसी परिभाषा में नहींचेहरा जिस परसंवेदना का रेखांकन नहींएक छवि भर हैचेहरे का कोई चरित्र नहींचेहरा
भारतीय परिधान सुंदर क्यों विमुख हैं नारियां खूब फबती सारियाँ ।। माँग में सिंदूर लठवा, तन सुशोभित सारी लसे देखकर मन पथिक का, बरबस उसी
कैद कर कब तक रखोगे मैं सदा दुनियां से हारी क्या कर रहा पागल मदारी।। प्रतिबंध पग-पग पे लगाया, लगाम तूं इतना कसा असत् जाल
जो मेरे सामने आओ तो दिल की बात हो तुमसेभरा जो प्यार है दिल मे कभी इजहार हो तुमसेअकेलेपन का जीवन भी कोई जीवन नहीं
जो राह तेरे ही दर पे जाए उसी पे हरदम कदम रखूंगासदा ही जीवन बना के निर्मल पुष्प कमल सा खिला करूगाकभी चुभूगा न शूल
त्याग प्रेम दिल भरा तो सब ही अपने हो गएचल के कर्म पथ पे हम इतिहास अपना गढ गयेहौसले बढ़ाके अपने हम शिखर पे चढ़
अब तो चेहरे पर आफताब नहीं दिखता हैसुर्ख गालों पर अब गुलाब नहीं दिखता हैमन की कुंठा में ही सब लोग सने बैठे हैंसब में
प्रेम दिलों में जगा है जबसे दर्द दिलों का बढा है तबसेओ जब से समझा है प्यार मेरा मजा है जीने में और तब सेदिलों
घिरे हुए अंतर तन मन में ज्ञान प्रेम की ज्योति जलाएँरहे अंधेरा कहीं नहीं अब जग में उजियारा फैलाएँमैंले कुचले दबे हुए जो उनमें भी
राह चलते या कहीं बाज़ार में पूछता है ख़ैरियत जब कोई परिचित भर आता है मन सोचता हूँ , खोल कर रख दूँ सभी गोपन-