बह गये हैं याद के घर वक़्त के सैलाब में
बह गये हैं याद के घर वक़्त के सैलाब में । झर गये सुरख़ाब के पर वक़्त के सैलाब में । मौन के पर्वत ठहाकों
बह गये हैं याद के घर वक़्त के सैलाब में । झर गये सुरख़ाब के पर वक़्त के सैलाब में । मौन के पर्वत ठहाकों
इमली के पेड़ों के पीछे छुपे हुए हो तुम । या मौसम की बेचैनी में भरे हुए हो तुम । नदिया की नीली आँखों में
उनको हमसे प्यार नहीं है क्या मुश्किल है । हालांकी इनकार नहीं है क्या मुश्किल है । अपनेपन की रजनीगन्धा महक रही है । रिश्तों
दूर तक सूखे हुए पत्ते मुहब्बत के । खिल नहीं पाये कभी गुंचे मुहब्बत के । किस क़दर कमज़ोर थे अपने नशेमन भी । आंधियों
एक तमन्ना मर गई , होते होते शाम । तड़प तड़प कर आ गया , इस दिल को आराम । चटकी कली गुलाब की ,
जी नहीं लगता कहीं पर क्या करें । सोचते रहते हैं दिन भर क्या करें । हैं सभी दुश्मन हमारी जान के । है यही
इस क़दर टूटे मरासिम वक़्त तनहा रह गया । मुस्कराहट जा चुकी है ज़ख़्म गहरा रह गया । यूँ तेरी तस्वीर रक्खी है ज़हन में
मुस्कुराने से भला क्या दर्द कम हो जाएगा । देखना इन कहकहों का शोर नम हो जाएगा । मौत से डरते हैं हम तो इक