नालायक बेटा
एक गाँव था, जहाँ एक मेहनती किसान, रामप्रसाद अपने चार बेटों के साथ रहता था। वह बचपन से अपने खेतों में पसीना बहाते हुए अपने
एक गाँव था, जहाँ एक मेहनती किसान, रामप्रसाद अपने चार बेटों के साथ रहता था। वह बचपन से अपने खेतों में पसीना बहाते हुए अपने
आज तो होली खेले बगैर जाने नहीं देंगे इतना कह कर करीब करीब 15 लड़कों का झुंड उन 5 लड़कियों के ग्रुप को घेर कर
रात बीत चुकी थी, सुबह का स्वच्छ आसमान धीरे-धीरे लाल रंग में परिणत हो रहा था । पर्वत की आड़ से भगवान भुवन भास्कर अपनी
प्रातः स्मरणीय पूज्यपाद श्री सत्यमित्रानन्द जी ने उचित ही कहा है कि सन्यासी को सम्पत्ति निर्माण में रस आने लगे तो उसका सन्यास नष्ट हो
“आशा, मुझे बच्चों को बहुत पढ़ाना हैं, क्योंकि उनकी हालत अपने जैसी कभी न हो।” विजय ने पत्नी से कहा।“क्या खाक पढ़ाओ गे। हर वर्ष
गाॅंव में सामाजिक परिवर्तन किस तरह से किया जा सकता है,इस संदर्भ में उच्च शिक्षित लड़कों में चर्चा हो रही थी,उसी समय जोर से आवाज
लोग कहते हैं कि मां-बाप के लिए सभी संतान एक जैसी होती हैं पर ऐसा होता कहां है, यह तो सिर्फ कहने सुनने के लिए
घास फूस की झोपड़ी में रहने वाला रामस्वरूप भले हीं अनपढ़ हो पर उसकी कारीगिरी को देखकर लोग दंग रह जाते हैं ,गांव से शहर
हरिपुर के छोटे जमींदार देव बाबू के घर में आज खूब चहल-पहल हो रहा था , चारों ओर खुशियां हीं खुशियां थी । घर के
दर्जन भर सूअरों के पीछे – पीछे दौड़ लगाती हुई सुग्गो जब ब्राह्मण टोला के पास जाती तो नीले और सफेद कपड़ों में सज धज