कविता

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बाट

अहले सुबह हीउठती हूँ मैंतुम्हारे संग – साथकी ख्वाहिश लिए….कितुम उठोगे तो चलोगेमेरे संगसुबह की सैर पर!जो हो गई देरतोपी लोगे साथ बैठसुबह की चाय

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फागुन (दो छन्द)

भंग की तरंग में उमंग इठलाय रही सा रा रा रा सा रा रा रा शोर चहुँओर है जाति सम्प्रदाय का कतहूँ भेद भाव नहीं

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बसंत पंचमी

बसंत पंचमी आई है खुशियों की लहरे छायी है इस दिन अवतरित हुई मां सरस्वती कहते है कला, विद्या की देवी मौसम भी है खुश

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गुलाबी होली

हर रंग में तू ही तू हैवो कौन जगह जहां तू नहीं,भोर की लाली में तुमरंग हरा बन, हरियाली में तुम,चांद से चमकीलेतुम सूरज से

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प्रेम का अबीर

बेरंग से रंग ढूंढने, बाज़ार में न जाएअपनों की प्रीतरंग, घुल मिल जाए,और होली की रौनक बढ़ाए… हर सुबह फिर गुलाबी होगीहर शाम फिर इन्द्रधनुष

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वसंत आया

वसंत आया, वसंत आया मच रहा चहुँ ओर शोर है आश्चर्यचकित हूँ  मन की अवस्था को देखकर…. शांति में डूबा है या हो रहा आनंद

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रंग भऐं सब प्रीत

कौन रंग फागुन रंगे, रंगे भऐं सब प्रीत, बसंत  रंग सब रंग रखा, धरा हुई सब प्रीत । नीला अंबर रंग दिया, धरा हुई रंगीन

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मधुमास की छटा

गोपियों संग कृष्ण ने रास रचाया, झूम झूम के “मधुमास” है ,आया। रंग गुलाल की उड़ रही फुहार, प्रकृति ने भी साथ निभाया। नई-नई कोपल,

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