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मंचों का किरदार हूं
कलम का पुजारी, मनमौजी फनकार हूं।साधक हूं शारदे का, वाणी की झंकार हूं। शब्दों की माला बुनता, कोई कलमकार हूं।गीतों की लड़ियों में, सुर छेड़ती
कलम का पुजारी, मनमौजी फनकार हूं।साधक हूं शारदे का, वाणी की झंकार हूं। शब्दों की माला बुनता, कोई कलमकार हूं।गीतों की लड़ियों में, सुर छेड़ती
एक दिन आयेगाऔर हम सब चले जाएंगे। कहां जायेंगेपता नही । पर उस टाइम कोईरोने वाला नही होगा। पर कोने में पड़ी होंगीकुछ कविताएं। जो
मैएकइंसानआप जैसामेरे दिल मेंभी तो पलता हैअरमान आप सामहनती भी हू मैवफा दार भी हूँकाम के प्रतिमजदूरही हूँ मैसच्चाजी मैंएकजीवटश्रमजीवीअपने बूतेपोषित करताअपना परिवारतकलीफ से सहीपर
दुआओं से झोली भरकर जब जीवन मुस्कुराता है।सारी बलाएं टल जाती पतझड़ सावन बन जाता है।पतझड़ सावन बन जाता है रोज शिवालय शिव की पूजा
अहले सुबह हीउठती हूँ मैंतुम्हारे संग – साथकी ख्वाहिश लिए….कितुम उठोगे तो चलोगेमेरे संगसुबह की सैर पर!जो हो गई देरतोपी लोगे साथ बैठसुबह की चाय
भंग की तरंग में उमंग इठलाय रही सा रा रा रा सा रा रा रा शोर चहुँओर है जाति सम्प्रदाय का कतहूँ भेद भाव नहीं
बसंत पंचमी आई है खुशियों की लहरे छायी है इस दिन अवतरित हुई मां सरस्वती कहते है कला, विद्या की देवी मौसम भी है खुश
रंग गुलाल तुम भेज दिये हैंपरमेरे चेहरे को जो रंग जाए, वोतेरे हाथ कहां से लाऊं मैं,औरमेरा दिल जो चाहे तुझे रंगने कोतेरे गाल कहां
हर रंग में तू ही तू हैवो कौन जगह जहां तू नहीं,भोर की लाली में तुमरंग हरा बन, हरियाली में तुम,चांद से चमकीलेतुम सूरज से
बेरंग से रंग ढूंढने, बाज़ार में न जाएअपनों की प्रीतरंग, घुल मिल जाए,और होली की रौनक बढ़ाए… हर सुबह फिर गुलाबी होगीहर शाम फिर इन्द्रधनुष