गीत

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प्रेम रस

जीवन पथ अति कठिन कंटक घनेरे। प्रेम रस का पान कर मन मधुप मेरे।। यह समूची सृष्टि ऐषणित तंत्र है, प्रेम ईशाकार परम स्वतंत्र है।

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चार साहबजादे

हे गुरु गोविंद सिंह के लाल, तुमने कर दिया खूब कमाल । प्राण दे दिए अपने हंसकर, पर नही झुकाया कभी भाल ।। वजीर खान

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वीरांगना लक्ष्मीबाई

कह रही है इक वीरांगना,मुझसे मेरी भू मत माँगना। क्रोध से भरी रक्त से सनी,वीरता की प्रतिमूर्ति खड़ी।राष्ट्र और प्रजा सुरक्षित हो,बस यहीं है उसकी

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भाव दिलों का जोड़ लो

दौर मुसीबत कर्मों का फलईश्वर पर ही छोड़ दोउम्मीद नहीं संसार सेकेवल ईश्वर से ही जोड़ लोतेरे हर प्रश्नों का उत्तरखुद से ही मिल जाएगाकरके

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वीर मल्हार

कट कर शीश गिरे धरा पर, लेकिन रूंड करै तलवार । मृत्यु से भी जो लड़ बैठे, ऐसा दिवला का राजकुमार ।। बावन गढ़ के

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प्राप्त है जितना वही पर्याप्त होना चाहिए

प्राप्त है जितना वही पर्याप्त होना चाहिए आंखों में आंसू नही मुस्कान होनी चाहिए गम में रहकर भी खुशी का भाव होना चाहिए एक सा

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