गोपियों का विरह वर्णन
लाए उद्धव एक चिट्ठी श्री कृष्ण की, गोपियों को लगा पत्रिका है प्रेम की । खोजने लगीं नाम उसमें अपना – अपना , सत्य जानकर
लाए उद्धव एक चिट्ठी श्री कृष्ण की, गोपियों को लगा पत्रिका है प्रेम की । खोजने लगीं नाम उसमें अपना – अपना , सत्य जानकर
वो एक कप कॉफी , कितना सुकून देती है ! रिश्तों में लाती है मिठास , दूर हुए लोगो को करती है पास , परिवार
अच्छे से कट जाता है समय कविता पढ़ने – लिखने से , मन को मिलता है बहुत सुकून कविता पढ़ने – लिखने से , शब्द
विगत वर्षों में खोए हमने , अपने बहुत से मित्र । रह गए उनसे रिश्ते फीके , जो थे हृदय में बैठे नीके । छुपाए
आया है नव वर्ष, लोगों में लेकर नई उम्मीद नया जुनून और नई आशा ।। आया है नव वर्ष , दूर करने अकर्मण्यता दिलाने सफलता
कुछ पंक्तियां लिखने से भर आता है मन , कुछ पंक्तियां लिखने से मिलता है बहुत अमन ।। कुछ पंक्तियां लिखने से ऐसा होता है
होता है बहुत दुःख कभी कभी, विगत को सोचकर, हृदय भी रोता है बहुत , निष्ठुर नियति को नोचकर मन में आती कि कर लेता
जग में कुछ भी जो व्याप्त है, केवल वही नहीं पर्याप्त है । होगा उसमे कुछ तो बदलाव, चाहे हो जिसमें तुम्हारी अरुचि या लगाव
एक मेरे मन ने ऐसी सोची, लिखूं एक कविता। कैसी होगी मेरी कृति, अकथनीय थी मनोवृति ।। पहली रचना लिखने बैठा, मन में उठी अनेक
सिंह आदि मांसाहारी को, करना हैं पड़ता , संघर्ष अगर । तो प्राण रक्षा हेतु भागते, मृग आदि शाकाहारी डरकर।। मृग आदि शाकाहारी को ,