डॉ अंजू सिंह परिहार
डॉ अंजू सिंह परिहार

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खुला आकाश सारा

फिर मिले की न मिले ये खुला आकाश सारा साँझ की पिघली शिला का रेशमी सा ये किनारा हो न शायद अब कभी इस राह

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क्या करूँ कैसे बताऊँ

क्या करूँ कैसे बताऊँ जन्म-जन्म की कथाएँ जो समय की कर्मनाशा में अकारण मिल गई जन्म लेता लुप्त होता धार में जल बिंदु सा फिर

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एक सुनहरी शाम

एक सुनहरी शाम का अँंचल आंखों में लहराता है यादों में भी तन्हाई में कोई मुझे बुलाता है एक तसव्वुर एक तिश्नगी एक दुआ है

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आ गया मधुमास फिर से

आ गया मधुमास फिर से आ गया शाख पर कोपल उगी फिर सुनी पदचाप जब मधुमास की डाल मेहंदी कि कहीं शरमा गई है सुगंधित

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लय बनकर तुम छा जाना

जीवन के सुंदर सपनों की बात बताने आ जाना रात कभी जब बीते कोमल लाली बनकर छा जाना मैंने तुमसे जो भी पाया वो श्रद्धा

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26/11 की घटना पर एक सोच

तूफानों का जोर लगाकर समय नया लिख जाएंगे आज हिमालय के माथे पर सूरज नया उगायेंगे गरजेगा यह सिंधु उफनकर राह नई दिखलाएगा मातृभूमि के

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हर मंज़र आज़ार हुआ

दरवाज़ा दीवार हुआ बिन दस्तक बेज़ार हुआ रिश्तों के सब झूठ खुल गए जब मोहसिन तलवार हुआ लंबी चुप और दिल भी खाली, निस्बत की

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अजब अजब सी रविश मिली है

अजब अजब सी रविश मिली है दुनिया के दीवारों पर कभी तसव्वुर कभी खुशबुयें कभी अश्क़ रुख़सारों पर आओ कुछ अल्फ़ाज़ बाँटलें कुछ तो शब्द

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