जी नहीं लगता कहीं पर क्या करें (गज़ल)।
जी नहीं लगता कहीं पर क्या करें । सोचते रहते हैं दिन भर क्या करें । हैं सभी दुश्मन हमारी जान के । है यही
जी नहीं लगता कहीं पर क्या करें । सोचते रहते हैं दिन भर क्या करें । हैं सभी दुश्मन हमारी जान के । है यही
इस क़दर टूटे मरासिम वक़्त तनहा रह गया । मुस्कराहट जा चुकी है ज़ख़्म गहरा रह गया । यूँ तेरी तस्वीर रक्खी है ज़हन में
मुस्कुराने से भला क्या दर्द कम हो जाएगा । देखना इन कहकहों का शोर नम हो जाएगा । मौत से डरते हैं हम तो इक