कवन, बिधि करू, मुकुन्द हम, तोड़ बड़ाई,
कबहुं, प्रेम, कभी करू, लड़ाई,
तोड़ प्रीति, सुनु हरजाई,
मोरे मन ही मन मे, हेराई।।
अब, करहु सनाथ, राम रघुराई।
हे, अ नाथन के नाथ, तोर, होई बड़ाई।।
जिन्हें मिली हो, वफ़ा कहीं, से।
अंदाज़, रखते, होंगे, वो नर्म, अपना।
हम, तो, दिल से, लूटा, रहे है।
मुकुन्द, हमारी हसरत, बस शुरू, हुई है।।
बचा के रक्खें, वो, अपने पिता की दौलत।
अपनी तो, ख़ुद, की, कमाई हुई है।।
है जेब ख़ाली, तो, क्या, करें हम।
बीमारे, दिल ही, को, लूटा, रहे है।।
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