स्पर्श


नहीं , मैं सागर नहीं हूँ
कि तुम्हारे द्वारा फेंके गये
शिला-खण्डों को
ज्वार-भाटे के जबड़े में जकड़ लूँ

ताल हूँ
तुम्हारा लघु पत्थर भी
आन्दोलित कर जाता है
केन्द्र से किनारे तक !

नहीं,मैं गुफा-गह्वर नहीं हूँ
कि तुम्हारे चीखते प्रश्न
तुम्हीं को लौटा दूँ
प्रतिप्रश्न के रूप में

वेणु हूँ
तुम्हारे फूंकने भर से
स्पंदित हो जाते हैं
रन्ध्र मेरे !

नहीं, पद्मपत्र नहीं हूँ
कि तुम्हारे सलिल -संग से
रह जाऊँ अलिप्त

कागज हूँ कोरा
गलने लगता हूँ
तरल स्पर्श भर से !

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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