वे दिन
सुखद-स्वप्निलसरस-सुहानेउम्मीदों भरे वे दिन-खेलने-खाने केगाने-गुनगुनाने केहँसने-हँसाने केगप्पे लड़ाने केबेफिक्र , सुरधनुषीबचपन-यौवन के वे दिनजुदा हो गये ! कहाँ खो गये ! बोझिल-उदासचुप-चुप ,तन्हा-तन्हाबहरे-से ,ठहरे से
सुखद-स्वप्निलसरस-सुहानेउम्मीदों भरे वे दिन-खेलने-खाने केगाने-गुनगुनाने केहँसने-हँसाने केगप्पे लड़ाने केबेफिक्र , सुरधनुषीबचपन-यौवन के वे दिनजुदा हो गये ! कहाँ खो गये ! बोझिल-उदासचुप-चुप ,तन्हा-तन्हाबहरे-से ,ठहरे से
किससे किसकी यारी है दुनिया कारोबारी है ! जाल बिछा है, दाने हैं दुबका वहीं शिकारी है ! मंचों पर जोकर काबिज प्रहसन क्रमशः जारी
अशेष अनुराग से गुड़िये को सजाती तुम बिसर जाती हो खाना-पीना बुदबुदाती है माँ झिड़कियाँ सुनाती है बेपरवाह, तन्मय तुम क्या कुछ गाती-गुनगुनाती हो रचाती
जीवन के दिन चार बन्धुवर किससे क्या तकरार बन्धुवर ! आज रू-ब-रू जी भर जी लें कल का क्या एतबार बन्धुवर! सुख तो एक तसव्वुर
साधक तिरस्कार-तम में हैंतिकड़मबाजों का अभिनन्दन! सीना ताने झूठ चल रहा/सच दुबका-सहमा कोने मेंजिसे देखिए वही लगा है/यहाँ स्वार्थ-बीज बोने मेंअर्थ कूच कर रहे शब्द
नहीं , मैं सागर नहीं हूँकि तुम्हारे द्वारा फेंके गयेशिला-खण्डों कोज्वार-भाटे के जबड़े में जकड़ लूँ ताल हूँतुम्हारा लघु पत्थर भीआन्दोलित कर जाता हैकेन्द्र से
पंख रहते हुए भी बेपर हुएपरिन्दे जो क़फ़स के अन्दर हुए ! पत्थरों को बना डाला देवतापुजारी जैसे स्वयं पत्थर हुए ! कह रहा था
लम्बी, छोटी नाजुक उंगलियाँ समवेत गोलबन्द होती हैं हथेली पर जब -मुट्ठी बन जाती है उनकी नजाकत अचानक हो जाती है मुट्ठी की ताकत हथेली
काॅफीघरों-चायखानों बैठकों , भाषण-मंचों के वृत्त से उछाले,पटके जाते हुए सरकाये , चबाये जाते हुए रात-दिन नीमजान हो गये हैं शब्द पीत,पस्त, खिन्न! शिद्दत से
बाहर है सब भरा – भरा / अन्तर्घट रीता का रीता ! कितना निष्फल,कितना दारुणजो समय अभी तक बीता ! सारे रिश्ते ज्यों लाल मिर्चलाली