आपके स्नेह की शीतलता से मन मानो शांत था
आपका आलिंगन छुवन तपिश खत्म करता था
यादों की उष्णता से आज मन विचलित होता हैं
पापा आपके स्नेहनिल प्रेम की बौछार खो गई हैं
आनन्दित पल आज बहार बन खुशियां दे जाते हैं
अन्तःकरण मानों आज भी खुशियां भर जाती हैं
शीतल आभा लिए बेटी आपका अंक तलाशती हैं
पापा आपके स्नेहनिल प्रेम की बौछार खो गई हैं
नयनो में आज भी छवि अलंकृत हैं आपकी
चलचित्र पटल पर आकृति उकेरित हो आपकी
अमित छाप जो आपकी मेरे अंतःकरण में बसी हैं
पापा आपके स्नेहनिल प्रेम की बौछार खो गई हैं
आपके स्नेह से रिक्त मानो टूट सी गई हूँ मैं
लगता हैं वर्षो से विश्राम ही नही ले पा रहीं हूँ मैं
दिए कि लौ सा प्रेम बुझे दीपक की बाती सा हैं
पापा आपके स्नेहनिल प्रेम की बौछार खो गई हैं
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