डॉ मंजु सैनी
डॉ मंजु सैनी

डॉ मंजु सैनी

पति-श्री पुष्पेंद कुमार,व्यवसाय -पुस्तकालयाध्यक्ष ग़ाज़ियाबाद में पिछले २५ वर्षों से पब्लिक स्कूल में कार्यरत।कृतियां-1-काव्यमंजूषा2-मातृशक्ति3-शब्दोत्सव4-अंबेडकर(जीवन संघर्ष एवं अनुभूति)4-महापुरुष5-काव्य शब्दलहर6-शब्द किलकारी(काव्यसंग्रह)7- नव कोंपले(शब्दरूप में),सम्मान-- प्राइम न्यूज़ द्वारा कलमवीर सम्मान-विक्रमशिला द्वारा विद्या वाचस्पति सम्मान-अखिल भारत हिन्दू युवा मोर्चा द्वारा सम्मान-श्रीज्योति सेवा मिशन हरिद्वार द्वारा सम्मान-आरोही संस्था दिल्ली द्वारा सम्मान-शांतिकुंज द्वारा सम्मान श्रेष्ठ अध्यापिका सम्मान- विधालय द्वारा सर्वश्रेष्ठ अध्यापिका सम्मान-विश्व हिंदी लेखिका मंच द्वारा"कल्पना चावलास्मृति पुरुस्कार-"विश्व हिन्दी रचनाकार मंच" द्वारा उत्तर प्रदेश" महिला रत्न सम्मान"- साहित्यबोध समूह द्वारा"साहित्य मार्तण्ड"सम्मान-दी ग्रामटुडे ग्रुप द्वारा"साहित्य शक्ति" सम्मान-अनेक सहित्य समूह द्वारा श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान,लेखन--अनेक समाचार पत्रों में लेख,कविताएं प्रकाशित-अनेक हिंदी पत्रिकाओं में लेख,कविताये प्रकाशित-अनेक ई-पत्र-पत्रिकाओं में लेखन प्रकाशित-अनेक साहित्यिक समूह में रचनाएं प्रकाशित,Copyright@डॉ मंजु सैनी/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

निर्झर शब्दलहर

आँसुओं से निर्झर अश्रु श्रँखला निर्बाध बह चली मानों दोनो के मध्य संधि अनुबंध करार बना चली अविरल अश्रु धारा मानों तटीबन्ध तोड़ बस चली

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प्रकृति के साथ

सही समझ सही भाव पर, करना होगा काम । मानव जीवन है सुखी, प्रकृति के साथ । इच्छा विचार आशा ये, सब है क्रियाएं ।

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शिव शंकरा

बम बम भोलेत्रिशूल धारी त्रिपुरान्तकारीदेह भस्म सारीमंथन किया सफलविष का पीया गरलसिर पर माँ गंगागले लिपटे भुजंगानटराज भोले बाबाअद्भुत अर्धनारीश्वर मेरे बाबाडमरू तांडव सजाएभांग घोट

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जिजीविषा

अब हर पल लगने लगा हैन जाने क्यों कि कुछ पीछे छूट सा गया हैंक्या छूटा समझ से परे ही लगता हैंएक रिक्तता सी लगने

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नव जीवन उत्सर्जन

करती उद्बोधन प्रकृति मानोजगा रही मानव को चिरनिंद्रा सेदेखो कैसे नव उत्सर्जन फिर से भरता प्राणन हो सुसुप्त ए वृक्ष तू हो फिर तैयारसत्य यही

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सुनो ना

सुनों..ना तुमबहुत बातें करती हूँ मैंअक्सर तुमसेन जाने क्योंसामने होने पर बोलनहीं पाती हूँपर अपनी लेखनी सेअपनी कविताओं मेंबात कर लेती हूँअपने मन केसारे भावओर

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कफ़न तिरंगा

मैं नही किसी से बैर भाव रखती हूँबस देश के काम आ सकूँ यही भाव रखती हूँदेश की मिट्टी माथे से लगाकर फक्र महसूस करती

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स्पर्धा

निरंतर आगे बढती चल तू मंजुकभी निराश न होना बस चलती जानान हताश होना बस बढ़ती जानाआगे आगे चलना होगानही पीछे मुड़कर कभी देखना होगातू

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साथ अपनो को

प्रकाश का मार्ग, अतिसुंदरदेखने मे मनमोहित होता हैंपर न जाने क्यो मुझे रीतापन सा लगता हैंचारो और रंगीन लाइटो की चकाचोंध तो है बेशकपर क्या

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निष्कर्म

निष्कर्म भाव से ही,प्रकृति देती हमको सबक्यो फिर पीछे हैं मानव उसके पोषण में अब।धरा के रूप को नमी को सवारना होगा अबअब चेत जा

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