स्त्री खड़ी सजी सँवरी
सौम्य लगी,दिल मे उतरी
तो वो उसका प्रेमी कहलाया
फिर बढ़े आगे तो
पत्नी कहलाई
वो सम्मान से पति कहलाये
और आगे चले तो
कंधे पर चढ़ बतयायी तो
बिटिया कहलाई
वो वहाँ पिता रूप में मिले
आया और अस्मत लूट चल दिया
तवायफ लगी
तो क्या बलात्कारी कहलाये..?
हर रात वो बदलता रहा
वो लुटती गई हर रात
वो सम्माननीय बना रहा
प्रश्न वहीं वो वेश्या कहलाई
पर वो क्या कहलाया..?
क्या वह वैश्या अकेली ही
बन पाई या बराबर
योगदान पुरुष का भी रहा
तो क्यों उस अभागी को ही
‘वेश्या’ये नाम दे दिया गया
क्यों घृणित दृष्टि उसे मिली
क्यों दोनो को समान दृष्टि नही मिली
बस इसलिए कि समाज हमारा
पुरुष प्रधान कहलाया
तभी तो स्त्री का सम्मान न कर पाया
उस रूप में जहाँ जाकर सुकून पाया
दर्द भरी तथाकथित वेश्या का दर्द
पर वो किस नाम से जाना जाए..?
जो वहाँ रात गुजार कर आये
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