काश , सिर्फ शब्द नहीं,
मरी या मृत तुल्य,
ख्वाहिशों का गुलदस्ता है l
जो कभी कभी,
या लम्हों के बीच कहीं,
थोड़ी,
बिन जल के मर रही
मत्स्य की तरह ,
जीने की कोशिश की ,
इच्छा रखता है ll
काश, मैं उड़ पाता पंक्षियों की तरह,
काश ,मैं हो पाता फिर से बच्चा ,
और फिर प्रकट कर पाता वह सभी भाव,
जो रह गए थे बचकाने में,
बोल पाता अपनी गुजरी हुई माँ को ,
प्रेम के वो सभी अधूरे से शब्द,
तोतली ही आवाज़ में सही,
काश, मैं दे पाता अपनी उम्र का कुछ हिस्सा,
उस हिस्से को,
जिसका हिस्सा है ये संपूर्ण हिस्सा ll
काश
काश
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