यूं लिबास मुझसे
यूं लिबास मुझसे उतारा नहीं गया,हर ज़ख्म मुझसे मेरा दिखाया नहीं गया । होठों पे दुःख के राग सभी गुनगुना गए,एक दर्द मुझसे मेरा सुनाया
यूं लिबास मुझसे उतारा नहीं गया,हर ज़ख्म मुझसे मेरा दिखाया नहीं गया । होठों पे दुःख के राग सभी गुनगुना गए,एक दर्द मुझसे मेरा सुनाया
ज़िंदगी की किताब के पन्ने,उड़ते हैं , फड़फड़ाते हैं ।कभी किसी स्थित परिस्थित में,फट जाते हैं , उखड़ जाते हैं । लेकिन किताब के हर
ज़िंदगी राहों सी हो गई है ,ज़िंदगी आहों सी हो गई है । हां,सभी तो चाहते हैं तेज चलना ,ज़िंदगी बातों सी हो गई है
यूंँ ज़िंदगी में गलतियांँ दोहराई नहीं जाती, यूंँ बात सभी की दिल से लगाई नहीं जाती। परिंदे हैं, उड़ने दो इन्हें उन्मुक्त गगन में ,
बाबू जी,मुझे फिर से वही बचपन चाहिए ।कि आप दफ़्तर से वापिस आओ,तो साथ में लाओ,मेरी ख्वाहिशों का इंद्रधनुष । अपनी ख़ाली जेबों के,वो खनकते
कुछ जिम्मेदारियों की चादर ओढ़े , चलो गणतंत्र मनाते हैं ।दिल को कर इन्द्रधनुषी , चलो तिरंगा ध्वज फैराते हैं ।।भूल न जाएँ ताकत अपनी,
मैं रोज सवेरे उठ जाता हूँ, तुम सोते या जगते होगे ll मैं मंद मंद मुस्काता हूँ, तुम रोते या फिर हस्ते होगे ll फ़र्क
कई लोगों के ख़त आए पर एक तेरा नहीं आया l शायद इस बार भी डाकिया मेरा घर नहीं पाया ll बड़ी उम्मीद से देखा
कुछ तो रोक रहा है मेरे दीवाने को, वरना कितना खाली है मैखाना उसे पिलाने को ll उसके पैरों में पड़ी हैं ज़माने की बेड़ियां,
वो मुस्कुरा देती है जब वो मुस्कुराता है न जाने कौन सा रिस्ता वो निभाता है सुकूँ से बेख़ौफ़ सा रहता है जब उसका अहसास