साधक तिरस्कार-तम में हैं(गीत)

साधक तिरस्कार-तम में हैं
तिकड़मबाजों का अभिनन्दन!

सीना ताने झूठ चल रहा/सच दुबका-सहमा कोने में
जिसे देखिए वही लगा है/यहाँ स्वार्थ-बीज बोने में
अर्थ कूच कर रहे शब्द से /क्रियाशून्य केवल शब्दांकन!

दूर-दूर तक पेड़ कट गये /रेंड़ भर रही है द्रुम का दम
ईंधन या कि उपस्कर बन गए/बरगद, पीपल ,सेमल,शीशम

चन्दन कम होते जाते हैं /सघन हो रहा है बबूल-वन !

दफ्तर घिरा दलालों से है /चौराहों पर रहजन का डर
छल छलकाती राजनीति है/आम आदमी का बस ईश्वर

आफत में है पड़ी शराफत/यहाँ दबंगों का पद-वन्दन !

बगुले का दरबार सजा है/बना राजहंस प्रतिहारी
स्वागत-समारोह कौए का/ कोकिल-बुलबुल बने प्रभारी

हुकुम बजाने में तत्पर हैं /नीलकंठ, मैना, शुक-खंजन !

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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