साँची आंखें

शब्द से चेतना तक फैले हुए हैं
हर तरफ नयन ही नयन
नयनो की अपनी लिपि
अपनी भाषा अपनी विधा
अपनी सूक्तियां
अपने दोहे अपनी चौपाइयां
नयनो के अपने सरोवर
अपने सागर और अपनी नदियाँ
नयन के अपने उपवास
अपनी उपासनाएं अपनी पूजाएं
नैनों की अपनी यात्राएं
अपने वृतांत अपनी पीड़ाएं
नयनों की अपनी कैद
अपनी जंजीरें
नयनों के अपने प्याले
अपने साकी अपने मयकदा
मन झांकता है पूरा का पूरा
दिल डोलता है
डोरों में नैनों के
नयनों के अपने आमन्त्रण
नयनों के अपने भाष्य
अपनी लिपि,अपने व्याकरण
एक फांस भी धंसी हो देह में
इनसे जाहिर होती है
कहीं चुभन है,टीस है
नयन बोलते हैं
बहुत बोलते हैं
अधरों के व्यायाम से
कुछ ज्यादा ही नयन कह जाते हैं
सच और झूठ के
संवाद छुपाए, नहीं छुपते
अधर कुछ और तो
नयन कुछ और ही बोल जाते हैं
सत्यमेव जयते की समूची
सांस्कृतिक कोशिकाएं
इन्हीं नयनों में होती है
नयन सच गवाह होते हैं
नयन झूठे नहीं होते

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रचनाकार

Author

  • त्रिभुवनेश भारद्वाज "शिवांश"

    त्रिभुवनेश भारद्वाज रतलाम मप्र के मूल निवासी आध्यात्मिक और साहित्यिक विषयों में निरन्तर लेखन।स्तरीय काव्य में अभिरुचि।जिंदगी इधर है शीर्षक से अब तक 5000 कॉलम डिजिटल प्लेट फॉर्म के लिए लिखे।

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