समय ने खोले बंद पुराने

समय ने खोले बंद पुराने

समय ने खोले बंद पुराने अनुभूति का गहरा सागर

तृष्णा चुगता एक पपीहा सुधि से शीतल कई जमाने

समय ने खोले बंद पुराने

 

प्रथम विरह की पहली बात जागती सोती कितनी रात

कल्प कल्पों से सुसंचित बतलाते ये समय सुहाने

समय ने खोले बंद पुराने

 

है विकल ये प्राण अब भी युग युगों तक फिर कहेंगे

याद के व्याकुल तराने समय ने खोले बंद पुराने

 

क्यों उदासी घेरती है याद वंचित टेरती है

जल उठी उन्मादिनी वो जल उठे उसके ठिकाने

समय ने खोले बंद पुराने

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रचनाकार

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  • डॉ अंजू सिंह परिहार

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