सत्य
जिंदगी से जल्द जो
हार मान जाते है
सुख की दहलीज़ से वो
पीछे छूट जाते है।
रेत में मिल जाती तब
उनकी खुशियाँ
उठ जाती फिर तब
अरमानो की डोलियाँ।
हर एक फूल को
मुरझाना पड़ता है
किसी के लिए खिलना
तो टूटना पड़ता है।
समुन्दर को भी
रेत से प्यार होता है
फिर भी उसे बार-बार
लौटना होता है।
गम कैसा उसका
जो सच ना था
सच बस वो था
कि तू जिंदा था।
धूप छाव में बस तू
बेफिजूल उलझा था
फिर लौट तू वहाँ
जहाँ से चला था।
ईश्वर से कर निवेदन
चित्त में स्मरण कर
ये क्षण भंगुर जीवन
प्रभु को अर्पण कर।
स्मरण रख तू इतना
सिर्फ़ ये सत्य है
तू जीव है इक आत्मा
परमात्मा का अंश है।
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