संघर्ष मगर अपना है

सच हुआ नहीं सपना
सच क्या होगा
सपना है!

चाहा करना सच स्वप्न
यही क्या कम है ?
आहत,मर्माहत हुआ
नहीं कुछ ग़म है
कुन्दन बनने के लिए
सदा कंचन को
तपना है ।

नीलिमा गगन की नहीं
कभी छू सकते
उड़ते उस ओर भला कब
हम थकते ?
फल छले भले–छल जाए
संघर्ष मगर अपना है ।

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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