सच हुआ नहीं सपना
सच क्या होगा
सपना है!
चाहा करना सच स्वप्न
यही क्या कम है ?
आहत,मर्माहत हुआ
नहीं कुछ ग़म है
कुन्दन बनने के लिए
सदा कंचन को
तपना है ।
नीलिमा गगन की नहीं
कभी छू सकते
उड़ते उस ओर भला कब
हम थकते ?
फल छले भले–छल जाए
संघर्ष मगर अपना है ।
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