सुखद-स्वप्निल
सरस-सुहाने
उम्मीदों भरे वे दिन-
खेलने-खाने के
गाने-गुनगुनाने के
हँसने-हँसाने के
गप्पे लड़ाने के
बेफिक्र , सुरधनुषी
बचपन-यौवन के वे दिन
जुदा हो गये ! कहाँ खो गये !
बोझिल-उदास
चुप-चुप ,तन्हा-तन्हा
बहरे-से ,ठहरे से ये दिन!
कहते हैं , गया वक्त नहीं लौटता
बेशक लौटता है
यादों के आँगन में !
सुमधुर यादों के सहारे ही
कट जाते हैं
बुढ़ापे के ये कठिन,
दुर्वह दिन!
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