विरान हुआ जंगल , तब बरसात आई है।
जनाजा बनगया जिस्म, तब दवा आई है।
तपन में ढूंढता तुझको रहा बगीचे;बागों में-
लगी जब आग मेरे घर,तब हवा आई है।
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स्नातकोत्तर(हिन्दी) सम्प्रति- शिक्षक (हिन्दी) के रूप में सीतामढ़ी,बिहार में कार्यरत|Copyright@प्रभात रंजन चौधरी इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |