प्रभात रंजन चौधरी
प्रभात रंजन चौधरी

प्रभात रंजन चौधरी

स्नातकोत्तर(हिन्दी) सम्प्रति- शिक्षक (हिन्दी) के रूप में सीतामढ़ी,बिहार में कार्यरत|Copyright@प्रभात रंजन चौधरी इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

चलता पागल पांव हमारा

अब भी पगडंडी राहों पर, चलता पागल पांव हमारा।बिते दिन की यादों को ले, खड़ा यह पीपल छांव पसारा।सन-सन करती चलती पूर्वा,संदेशा किसकी लाती है,बरसों

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रिश्तों की बात हो।

जिस्मों के भीड़ में अब रिश्तों की बात हो, हैवानियत से मिलचुके अब  फरिश्तों की बात हो। मुहब्बते सरजमीं से कर   लाखों ही  मर-मिटे, अब

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यह जीवन पथ आसान नहीं।

यह जीवन पथ आसान नहीं। झंझा झकझोरती है पल-पल, अमावस्या की काली रातों में, है गात ,कांप जाते देखो- हीम मिश्रित ठंडी वातों से। कंपकंपाती

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फन

हवा के शोर में संगीत सुनना छोड़ दूँ क्या ? जख्म है दिल में, तो जीना छोड़ दूँ क्या ? बेवफ़ाई तेरा फन , जो

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तेरी गली

किताब में फूल की सूखी पंखुड़ी मिली है। रास्ता मिलता रहा पर मंज़िले ,ना मिली है। तुम्हारे दरों दीवार को पहचानता हूं, तेरे चेहरे की

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विरान

विरान हुआ जंगल , तब बरसात आई है।जनाजा बनगया जिस्म, तब दवा आई है।तपन में ढूंढता तुझको रहा बगीचे;बागों में-लगी जब आग मेरे घर,तब हवा

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पथ के राही

मैं कहीं पर रूक न पाया! एक हृदय ले इस जगत में, पथ पे अपना पग बढ़ाया। राह में छाया सघन थी, पंछी ने आवाज

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धरती क्या हंसने लगी?

चांद निकला गगन में, हंसी चांदनी, तो मगन हो के धरती क्या हंसने लगी? माना हंसते हो कुछ पादप लता- संग बेला, चमेली, रातरानी भले,

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दीपक की बाती जलती है

चित्र संजोए बचपन के, यौवन का कुछ उद्गार लिए, घुम रहा डगर शहर में- यादों का एक संसार लिए। बिजली -बत्ती रह-रह कर, बीच सड़क

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