चलता पागल पांव हमारा
अब भी पगडंडी राहों पर, चलता पागल पांव हमारा।बिते दिन की यादों को ले, खड़ा यह पीपल छांव पसारा।सन-सन करती चलती पूर्वा,संदेशा किसकी लाती है,बरसों
अब भी पगडंडी राहों पर, चलता पागल पांव हमारा।बिते दिन की यादों को ले, खड़ा यह पीपल छांव पसारा।सन-सन करती चलती पूर्वा,संदेशा किसकी लाती है,बरसों
जिस्मों के भीड़ में अब रिश्तों की बात हो, हैवानियत से मिलचुके अब फरिश्तों की बात हो। मुहब्बते सरजमीं से कर लाखों ही मर-मिटे, अब
यह जीवन पथ आसान नहीं। झंझा झकझोरती है पल-पल, अमावस्या की काली रातों में, है गात ,कांप जाते देखो- हीम मिश्रित ठंडी वातों से। कंपकंपाती
हवा के शोर में संगीत सुनना छोड़ दूँ क्या ? जख्म है दिल में, तो जीना छोड़ दूँ क्या ? बेवफ़ाई तेरा फन , जो
किताब में फूल की सूखी पंखुड़ी मिली है। रास्ता मिलता रहा पर मंज़िले ,ना मिली है। तुम्हारे दरों दीवार को पहचानता हूं, तेरे चेहरे की
विरान हुआ जंगल , तब बरसात आई है।जनाजा बनगया जिस्म, तब दवा आई है।तपन में ढूंढता तुझको रहा बगीचे;बागों में-लगी जब आग मेरे घर,तब हवा
मैं कहीं पर रूक न पाया! एक हृदय ले इस जगत में, पथ पे अपना पग बढ़ाया। राह में छाया सघन थी, पंछी ने आवाज
चांद निकला गगन में, हंसी चांदनी, तो मगन हो के धरती क्या हंसने लगी? माना हंसते हो कुछ पादप लता- संग बेला, चमेली, रातरानी भले,
चित्र संजोए बचपन के, यौवन का कुछ उद्गार लिए, घुम रहा डगर शहर में- यादों का एक संसार लिए। बिजली -बत्ती रह-रह कर, बीच सड़क