यह प्रेम अगर फिर अपना होता
यह प्रेम अगर फिर अपना होता
मैंने भाग्य सँवारा होता
तुम मिलते फिर फिर से मुझको
क्यो प्यार मेरा बञ्जारा होता
कुछ भी मेरे पास नहीं है
बलखाती वो आस नहीं है
एक अकंपित स्वर होता जो
मैंने तुम्हें पुकारा होता
भूल गए तुम साथ हमारा
हर पीड़ा से किया किनारा
चुन लेते जो व्यथा प्यास की
वो माधुर्य तुम्हारा होता
मधुबन की फिर बात नहीं है
मुस्काता परिहास नहीं है
नाद सुरों के इस विहान में
इक सुर काश तुम्हारा होता
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