मैं मंत्रों की हृदय धारा हूँ
चाहो तो
जड़ देना ताले
दुनियां भर की
किताबों पर
लेकिन नहीं बना सकते तुम
ऐसी कोई दीवार
जो पहरे बैठा दे
मुझ पर
मैं कोई पंछी नहीं
जिसके लिए
बनाए
पिंजरें और जाल
मैं मुक्त मानवी
उड़ती इच्छा के परों पर
कल अगर मैंने साथ न
दिया होता तो
निश्चित ही तुम
गुफाओं में बैठे
खा रहे होते कच्चा मांस
मैं प्रसूता हूँ
धरा के समूचे विकास की
मैं स्त्री हूँ
मेरे बिना कोई मन्त्र ध्वनित और पूजाएं
फलित नहीं होती
फिर मैं विडम्बना क्यों ?
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