मेरे हौसलों को लोग आजमाने में लगे हैं

मेरे हौसलों को लोग आजमाने में लगे हैं

हम अपना आशियाना बनाने में लगे हैं

परिन्दा हूँ आसमान में उड़ने की सनक है

और साहेबान मेरे पर कतरने में लगे हैं

धरती को फिर से दुल्हन बनाने की जिद है

दरिया का रूख हम तो बदलने में लगे हैं

चिराग बुझ न जाये अमन का शहर में

ऑधियो में हम खुद जलने में लगे हैं

डरने लगी हैं नदिया शहर में आने से

दरिया को लोग गंदगी करने में लगे हैं

इक दिन जल की बुंदे न दिखेगी धरा पर

कुँआ तलाब को लोग भरने में लगे हैं

आसमान से कोई फरिश्ता नहीं आयेगा

इन्सान की फितरत हम बदलने में लगे हैं

बेटियों के अस्मत लुटने से कौन बचायेगा

हर घर घर रावण अट्टहास करने में लगे हैं

छोड़कर बैकुंठ कांन्हा धरती पर आ जाओ

हर फुल को भंवरे यँहा मसलने में लगे हैं

सावन झूमकर जरा बरस जा धरा पर

मक्का चना बाजरा सब कटने में लगे हैं

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रचनाकार

Author

  • राजीव रंजन रौशन

    राजीव रंजन रौशन पटना बिहार Copyright@राजीव रंजन रौशन / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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