मानव
कुछ जानबूझ के
कुछ अनजाने में किया करते हैं
हम उनको कैसे कह दे
अकेले ही जिया करते हैं
फितरत है दुनिया की
हर रोज दो-चार हुआ करते हैं
खुद को माहौल सा
ढाला करते हैं
संबंध जोड़े थे उसने
निभाया करते हैं
टूटे बगैर चला करते है
समय को गुनगुनाते हैं
नियति के हिसाब से चला करते है
रूठना आदत थी हमारी
अब हंसा करते हैं
पग पग पे पग को चला करते हैं
देखे जाने की संख्या : 282