भूख झेलना
भूख पर भाषण बेलना
दो विपरीत बातें हैं बरखुरदार !
जीभ को आँच तक नहीं आती है
पर, छूते ही आग जलाती है ।
चिलम ही जानती है
आग का अर्थ
जिस पर चढ़े हैं अंगारे
पानी से भरा हुक्का तो
मौज से ‘ गुड़-गुड़ ‘ उच्चारे !
भूख बोते हैं आप
भुखमरों पर रोते भी हैं आप
वाह,जनाब !
कौन कहता है ,
दो जीभ वाले होते हैं सिर्फ साँप ?
श्रीमान् ! हमारी भूख को भँजाइए
भूख रोइए ,भूख गाइए
हम भूख ढो रहे हैं
बोझ बहुत भारी है
समूह हो रहे हैं
आप सोचा करें कि हम सो रहे हैं
भूख पहले आदमी की नींद
फिर चैन , फिर सब्र खाती है
फिर अनाजों से भरे गोदामों के
दरवाजे खटखटाती है ।
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