कुछ नन्हें दीपक सूरज को रस्ता दिखलाते हैं,
कुछ जुगनू अपनी मेहनत से आलोकित हो जाते हैं
कुछ हाथों की कलम कभी भी लिखती नहीं धरा पर,
कुछ हाथों की छेनी किस्मत लिख जाती वज्र सिला पर l
कुछ हाथों में आज एक सुर्ख लाल गुलाब दिखेगा,
राजनीति की चौखट पर, फिर बचपन माथ घिसेगा l
बाल दिवस फिर कागज़ पर मंद मंद मुस्कायेगा,
कोई बालक भूखा नंगा अशिक्षित प्राण गवायेगा l
फर्क नहीं पड़ता अब किसी को जिये मरे कोई चाहे,
बाल दिवस तो सदियों से अपना ही राग सुनाये ll
लेकिन वक्त सुरक्षित रखता, प्रश्न और उत्तर को l
फर्क नहीं रखता वो, कोई छोटा हो या ,उम्र चाहे सत्तर हो l
माना कि, भाषण आज कई नए अध्याय लिखेगें!
फिर भी छोटे तारों के भाग्य वही ही रहेंगे ll
फिर कोई छोटू सबकी जुबान पर आजायेगा,
जरा इधर भी चाय पिलाना, वाक्य गूंज जायेगा ll
नुक्कड़ नुक्कड़ फटे लिफ़ाफे यूँ ही दिख जायेंगे,
ख़्वाब दफ़न कर कब्र में करके, सब्र की सूली चढ़ जायेंगे ll
नन्हें नन्हें हाथों से फ़ौलादी रचनायें होंगी,
युद्ध खत्म फिर शुरू अनंत तक यात्रा जारी होगी ll
औरों की क़िस्मत लिखते लिखते,
कोमल हाथों की लकीर घिसेंगी l
स्थिति परिस्थित के चक्रव्यूह में,
परिणाम की किस्मत वही रहेगी l
मोह त्याग कर क्या तुम बोलो,
शब्द से आगे बढ़ पाओगे !
उनके हिस्से का महायुद्ध क्या,
निस्वार्थ भाव से लड़ पाओगे!
क्या बच्चों का बालकपन, फिर से खिल पायेगा !
मासूमों के चेहरे पर इंद्रधनुष फिर दिख पायेगा !
क्या सब अपना जन्मदिवस बाल दिवस कर पायेंगे !
क्या कुछ मुरझाई फसलों को रोग मुक्त कर पायेंगे !
क्या अ से अंबर के तारे, उनकों दिख पायेंगे!
क्या ज्ञ से अब भी वो सितारे ज्ञानी हो पायेंगे !
दुःख की नदियों में क्या कभी, मीठा जल बहेगा!
अधखुले अंग से लाचारी का लम्हा दूर रहेगा !
या यूँ ही ये बाल दिवस आता जाता होगा!
या फिर उनकी खातिर कोई एक नया मार्ग खुलेगा ll