बाबू जी,
मुझे फिर से वही बचपन चाहिए ।
कि आप दफ़्तर से वापिस आओ,
तो साथ में लाओ,
मेरी ख्वाहिशों का इंद्रधनुष ।
अपनी ख़ाली जेबों के,
वो खनकते सिक्कों से ,
ले आना कुछ टॉफी कुछ कंपट ।
मैं फिर दौड़ कर,
आपके पैरों के,
जूतों के लेसों को खोलना चाहता हूंँ ।
बाबू जी,
मैं फिर वही बचपन जीना चाहता हूंँ।
बाबू जी,
मुझे फिर से वही बचपन चाहिए ।
कि जब आप दफ़्तर से वापिस आओ,
तो मैं खोल सकूँ,
शिकायतों का पिटारा ।
और फिर तुम्हारा वही कहना,
कि मैं अभी सबको डांटता हूंँ ,
अभी सबको मारता हूंँ ,
कर दे मेरी शिकायतों का निपटारा ।
मैं फिर से दौड़ कर ,
तुम्हारी शर्ट टांँगना चाहता हूंँ ।
बाबू जी,
मैं फिर वही बचपन जीना चाहता हूंँ।
बाबू जी,
अब मेले में दुकानों की ,
तमाशों की,
इच्छाओं की,
ऊंचाई ज्यादा हो गई है।
पर अब भी इन आँखों से ,
सही से देख नहीं पाता हूंँ।
आपकी आँखों से जो देखा,
आपके कंधों पर चढ़ जो छुआ,
अब कुछ न देख पाता हूंँ ,
न कोई बुलंदी छू पाता हूंँ ।
बाबू जी,
मैं फिर से ,
इस भीड़ में सबसे ऊंचा होना चाहता हूंँ ।
बाबू जी,
मैं फिर वही बचपन जीना चाहता हूंँ।
स्कूल में वो काली तख्तियों पर
अक्षर आँकना ।
घर आकर,
आपको गृह कार्य देकर,
आपकी कॉपी जाँचना ।
कभी कभी,
आपके दफ़्तर के पन्नों पर,
मेरी गिनतियों का हांफना।
कभी आपके जूतों में पैर डाल,
घर के छप्पर की लंबाई नापना,
आपके बताए हर हर्फ को ,
दोहराना चाहता हूंँ,
बाबू जी,
मैं फिर वही बचपन जीना चाहता हूंँ।।
ज़िंदगी की चौखट पर,
पढ़ाए गए पाठों को,
कुछ ताज़े,
कुछ नासूर,
ज़ख्मों वाले घावों को ।
कुछ शैतानियां, कुछ गलतियां,
कुछ परेशानियांँ, कुछ हैरानियांँ ।
माँ की धमकी,
आपका समझाना ।
वो हिदायत भरे शब्द,
फिर सुनना चाहता हूंँ ।
बाबू जी,
मैं फिर वही बचपन जीना चाहता हूंँ ।
आज फिर से चलते चलते,
आपके घुटनों सा ,
यूं ही पैरों में दर्द जग आया ।
आँखों पर चश्मा लगाते वक्त,
आपकी आँखों की तरह,
कुछ धुंधला धुंधला सा ,
नज़र आया ।
शर्ट की बाजुओं की,
लंबाई थोड़ी कम मिली।
उम्र की हर दहलीज को
आपकी उंगली पकड़,
पार करना चाहता हूंँ।
बाबू जी,
मैं फिर वही बचपन जीना चाहता हूंँ ।