नया साल आया है !

पिछले हैं जख्म हरे ,दहशत का साया है

विज्ञापन पर सवार नया साल आया है !

थिरक रहे साहब जी,हल्कू हलकान बहुत

नगरों में नाच-गान, गाँव परेशान बहुत

छला गया वादों से आज तक रिआया है !

बाजारी मालों में , लुटेरे -दलालों में

एक चमक नयी-नयी कपट भरी चालों में

छाँछ क्यों न फूँकें हम, दूध ने जलाया है !

मस्त-मस्त चन्द लोग , बहुजन क्यों तंगहाल ?

हाल वही बासी, फिर कैसा यह नया साल ?

मुखौटा नया, छलिया समय ने लगाया है !

नया साल आया तो जन-मन को हर्ष दे

मानवीय मूल्यों को नूतन उत्कर्ष दे

सपनों ने नयनों को फिर से ललचाया है!

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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