धर्मराज के दरबार में जब तेरा हिसाब होगा
तेरे गुनाहो का वहाँ किताब होगा
अगर हाथ तुने पकड़ा न समर्थ गुरू का
काल के देश से तु कैसे अजाद होगा
खुदा के अदालत मे जब होगी हाजिरी तेरी
मौज से जो करता है तु कर वो बंदे
बंगला ये गाड़ी सब यही खाक होगा
न सजा न सवार इस चेहरे को रौशन
पंच भौतिक शरीर इक दिन राख होगा
काल ने अजब खेल रचाये है जग मे
भूल भरम मे सभी पडे है पग पग मे
बिन सतगुरु के केसे तु पार होगा
दयाल के पनाह मे सभी चल पड़ो तुम
काल के दरबार से खाता ही साफ होगा
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