तेरे शहर में गरीब के अस्मत भी बिके हैं

मुझसे मिले हैं जो भी वो लुटने वाले मिले हैं

खुदा शहर मे तेरे बहुत सारे शिकवे गिले हैं

खुदा दर पर तेरे पंडित मुल्ला झगरते दिखे हैं

पर साकी के मयखाने में गले से गले मिले हैं

पश्चिम सभ्यता के रंग मे रंग गये हैं युवा भी

संस्कार लिबास लहजा न कहीं ढूंढे मिले हैं

एटम बमों के जोड़ पर ऐंठ रही है दुनिया

बापु के अहिंसा अब ये ढहते हुये किले हैं

झुठ खुब बिक रहा है शहर के बाजारों में

सच बोलने वालों के यँहा होठ भी सिले हैं

कहने के अपने हैं मगर अपना न दिखा कोई

अपनो के महफिल में मुझे बेगाने मिले हैं

बेटी की शादी मे बिक जाती हैं बाप की पगड़ी

यँहा जो भी मिले मुझको सब सौदागर मिले हैं

क्या क्या लिखू क्या क्या कहु शर्मसार हैं रौशन

खुदा तेरे शहर में गरीब के अस्मत भी बिके हैं

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रचनाकार

Author

  • राजीव रंजन रौशन

    राजीव रंजन रौशन पटना बिहार Copyright@राजीव रंजन रौशन / इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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