किताब में फूल की सूखी पंखुड़ी मिली है।
रास्ता मिलता रहा पर मंज़िले ,ना मिली है।
तुम्हारे दरों दीवार को पहचानता हूं,
तेरे चेहरे की सिलवटो को जानता हूं,
कदम उठते है मेरे ,तुम्हारी चौखटों तक जाने को;
इमारत देखता हूं, लेजाए वह गली ही ना मिली है।
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