तेरी गली

किताब में फूल की सूखी पंखुड़ी मिली है।

रास्ता मिलता रहा पर मंज़िले ,ना मिली है।

तुम्हारे दरों दीवार को पहचानता हूं,

तेरे चेहरे की सिलवटो को जानता हूं,

कदम उठते है मेरे ,तुम्हारी चौखटों तक जाने को;

इमारत देखता हूं, लेजाए वह गली ही ना मिली है।

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रचनाकार

Author

  • प्रभात रंजन चौधरी

    स्नातकोत्तर(हिन्दी) सम्प्रति- शिक्षक (हिन्दी) के रूप में सीतामढ़ी,बिहार में कार्यरत|Copyright@प्रभात रंजन चौधरी इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है |

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