तुम्हारी याद
जैसे घने जंगल में भटके हुए
प्यासे बटोही के कानों में
बज उठे
किसी निर्झर की आहट का
जलतरंग!
तुम्हारी याद,
जैसे तंग ,अनजान गली से गुजरते हुए
दामन से आ उलझे चंपई पतंग !
तुम्हारी याद,
जैसे पतझर के अवसाद को
अतीत करती हुई
कोयल की पहली कू•••••
तुम्हारी याद,
जैसे आषाढ़ की पहली झड़ी में
घुलती मिट्टी की ख़ुशबू!
तुम्हारी याद,
जैसे थकान का सरिता-स्नान
अलसित मन की प्रभाती
वीतबंध यह स्मृति ही
पाथेय, संबल, थाती !!
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