बात कर लेने मात्र से ही तो
मन मे दबी भावनाएं
उखड़ने लगती हैं
मन पर बढ़ा हुआ भाव
हल्का हो जाता है
मन में भड़कते उद्वेग
विस्तार रूप ले लेते हैं
तब कहीं जाकर मन शांत होता है
अभिव्यक्ति से मानो उपचार सा हो जाता है
मानो किसी दुखते घाव पर
मरहम लग जाता है
अपने भाव शांत रूप की ओर
अग्रसर हो जाते हैं
अभिव्यक्ति मात्र से ही
दर्द मानो उड़ जाते हैं
तब कहीं जाकर मन शांत होता है
दबे हुए भाव मन को
कुंठित करते हैं
व्यक्तित्व को अपने प्रहार से
आहत करते हैं
स्वयं पर ही भरोसा
मानो कम करते हैं
अनाभिव्यक्ति से ही तो
कुंठाओं में घिरते हैं
तब कहीं जाकर
मन शांत होता है
मन स्वयं के विचारों पर
पश्चाताप करता है
कभी हास्य तो कभी
रुदनावस्था देता है
दबे हुए भाव को
व्यक्त करने से
शांतचित्त होता है मन
अवचेतन की अवस्था से
बाहर आता है
तब कहीं जाकर
मन शांत होता हैं
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