जोगीरा

मेरे गुरु, भोले भंडारी, उनके गुरु गोसाई।
बज्रिका मेरी वैशाली वाली, मिथिला वाली, सीतआमाई
अब सुनो जोगीरा, भाई।
जोगीरा स र र र र

जोगीजी, जोगीजी वाह जोगीजी,
राधा, रास की, खाये मलाई,
मीरा कहे, हरजाई।
और, वो बैठा, जमुना के तीरे, कान्हा, कन्हाई।
जोगी जी, स र र र।

कोई, ढूंढे, कठौती में गंगा,
कोई दियो, उगना बेलगाई,
कलयुग में, हर घाट पे गंगा,
तू क्या, ढूंढे भाई।
जोगीरा स र र र। जोगीजी स र र र।
विष पीकर, विष हर की पूजा कोई कर सके
तो तुम बताओ,
हर हर हरित हरितां, मेरे सारे भाई।
जोगीजी स र र र रा

कैकई के मति घुमैल्क
उनकर नैहर वाली, मंथरा, दासी,
देखा नियति ऋषि मुनि के,
राम जी,
बन गईलन बन बारी।
जोगीरा, स र र र रा

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रचनाकार

Author

  • Dr. Mukund Kumar

    Dr. Mukund Kumar (Bihar) Copyright@Dr. Mukund Kumar/ इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है | इनकी रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है | Master of Arts from, The Department of Economics, BRA, Bihar University, Muzaffarpur; M. Phil & Ph.D from ICFAI Group, Hyderabad and Dehradun; UGC-NET in Economics; Asst. Professor, Department of Economics. Dr.LKVD, College, LN Mithila University, Darbhanga.

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