अब हर पल लगने लगा है
न जाने क्यों कि कुछ पीछे छूट सा गया हैं
क्या छूटा समझ से परे ही लगता हैं
एक रिक्तता सी लगने लगी हैं मुझे
न जाने क्यों कुछ अपूर्ण सा हैं
सोचती हूं क्या कुछ छूटा क्या कुछ मिला
समय निकाल फिर से याद किये वो बीते लम्हे
एक बार फिर से क्या बिता वक्त लौट कर मिल सकता है..?
सोचें,तो आपको भी मेरी तरह शायद…
तस्वीर जीवित सी हो जाये गए वक्त की
आंखों में आंसू भर आये एक दर्द का अहसास हो
और फिर से समय की दौड़ में लग जाती हूँ
जीवन की जरूरतों को पूरा करने की होड़ में
आगे बढ़ने को खुद को भूल कर..
आज को जी भर जीने का मकसद तलाशती सी
शायद कोई मकसद अब भी मिल जाए…!
न जाने जीवन की शाम कब हो जाये जी लूँ खुद में
खुद को प्यार से गले लगाऊं खुद को देख पाऊं
पकड़ लूं सब खुशियां ताकि कुछ रह न जाये पीछे
ये जिजीविषा लिए बढ़ रही हूँ …
न जाने क्यों…??
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