जाने क्यों अकसर लगता है
अपनों से ही डर लगता है!
बातों में दिलबर लगता है!
हासिल है जो सीप-शंख-सा
मिला न जो गौहर लगता है!
जितना कम सामान साथ हो
उतना सरल सफर लगता है !
घर तो बेटों-बहुओं का है
हर बूढ़ा बेघर लगता है !
अंग आचरण का बन जाए
ज्ञान तभी सुन्दर लगता है।
मन कबीर-सा हो जाए फिर
काशी-सा मगहर लगता है!
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