बुद्धि के दुर्गम किले में/ कैद भोली भावना है/ कंटकों की कचहरी में /फूल फरियादी बना है !
ज़िन्दगी का अर्थ — केवल अर्थ-संचय, त्याग से ज्यों आदमी का चिर अपरिचय
अश्व पूँजी के खुले हैं/कठिन कितना थामना है !
पुष्करों में पंक’–पंकज नहीं खिलते / अंक उसके सिर्फ हैं शैवाल पलते
घात में हर घाट बगुले/ जाल मछुवों का तना है !
किताबों में लिखा है ‘सद्भाव’ पढ़िए/ धर्मं ,भाषा,जाति का टकराव डरिए
सियासत के हाथ का अब आदमी ज्यों झुनझुना है !
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