ज़िन्दगी का अर्थ

बुद्धि के दुर्गम किले में/ कैद भोली भावना है/ कंटकों की कचहरी में /फूल फरियादी बना है !

ज़िन्दगी का अर्थ — केवल अर्थ-संचय, त्याग से ज्यों आदमी का चिर अपरिचय

अश्व पूँजी के खुले हैं/कठिन कितना थामना है !

पुष्करों में पंक’–पंकज नहीं खिलते / अंक उसके सिर्फ हैं शैवाल पलते

घात में हर घाट बगुले/ जाल मछुवों का तना है !

किताबों में लिखा है ‘सद्भाव’ पढ़िए/ धर्मं ,भाषा,जाति का टकराव डरिए

सियासत के हाथ का अब आदमी ज्यों झुनझुना है !

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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