जब हवाओं में है आग की-सी लहर

जब हवाओं में है आग की-सी लहर

देखिए, खिल रहे किस क़दर गुलमोहर !

हौसले की बुलन्दी न कम हो कभी

आदमी के लिए ही बना हर शिखर ।

उस तरफ़ का किनारा न उसके लिए

जिसके भीतर भरा डूब जाने का डर ।

ज़िन्दगी बे-उसूलों की ऐसी लगे

जैसे बे-शाख़ ,बिन पत्तियों का शजर ।

चाँदनी में चिराग़ों को मत भूलिए

चार दिन चाँदनी फिर अँधेरी डगर !

पहले जैसी कहाँ गाँव की छाँव अब?

गाँव में घुस रहा रफ़्ता-रफ़्ता शहर !

बाख़ुशी आप बेशक वफ़ा कीजिए

दर्द होगा सिला ढूँढिएगा अगर ।

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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