चार पैसे की जिंदगी
चार पैसे की जिंदगी ,लाखों कमाने लगे
हम अपने घरों से दूर जाने लगे
मां-बाप ना घर द्वार मिले ,पैसे की रस्म निभाने लगे
बीवी तन्हा बिताने लगी, पैसे के सपने सजाने लगे
चार पैसे की जिंदगी लाखों कमाने लगे
अपनों से दूर जाने लगे
दर्द ना जाना जख्मों का मरहम लगाने लगे
खोया जब स्वप्न हंसने लगे
मिला न दोबारा खोने लगे
चार पैसे की जिंदगी लाखों कमाने लगे
संभाल रिश्तो का पतवार चलने लगे
चार पैसे में जिंदगी गुजरने लगे
-शंकर सुमन
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