चाररोजा ज़िन्दगी में क्यों भला तकरार हो?

चाररोजा ज़िन्दगी में क्यों भला तकरार हो?
जितने पल हासिल हमें हैं प्यार केवल प्यार हो ।

सजल हों कादंबिनी-सा ,सरल शिशु-मुस्कान- सा
वचन में मन हो समाहित,निष्कपट व्यवहार हो ।

इस चमन में फूल की कोई कमी तो है नहीं
अपने दामन में भला फिर एक भी क्यों खार हो ?

मुँह छुपाता सच फिरे औ’
झूठ का सम्मान हो
इस समय से कोई समझौता
न हो ,प्रतिकार हो ।

कौन जाने कब मिलन की बाँसुरी आवाज़ दे
वक़्त है थोड़ा अभी से सोलहों शृंगार हो ।

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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