चाँद के सब अफ़साने हैं
चाँद की बातें चाँद के किस्से
चाँद के सब अफ़साने हैं
बीती बातें बीती रातें
गुज़रे कई ज़माने हैं
इक अल्हड़ ने उन बातों में
ग़ज़ल के मिसरे घोले हैं
वो हँसती तो ख्वाब महकते
हम उसके दीवाने हैं
कितनी रात गुजारी हमने
इक उस रात की आहट में
उसके पैर में चाँद के पायल
कितने और बहाने हैं
हमसे वो मंसूब नहीं
हर साँस में फिर भी लाज़िम है
उन गलियों से जब जब गुज़रे
हर मंज़र पहचाने हैं
दिल के इस खाली जंगल में
वो दिन रात भटकती है
उसके दर पर क्यों जाना है
उसके यहीं ठिकाने हैं
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