हरसिंगार-टहनी पर चाँदी के फूल खिले
जाने किन सुधियों में औचक ये होंठ हिले !
राहें थीं विजन-विजन
थका-थका बोझिल मन
ऐसे में , कैसे तुम अनाहूत आन मिले !
चिन्ताएँ भी चन्दन
नेह नूर भरे नयन
सिसक रही साँसों को,मस्ती के गान मिले!
बीत रहे जो भी दिन
प्यार पगे ये पल-छिन
इन्हीं में खो जायें , कैसे शिकवे -गिले !
झड़ते हैं फूल खिले
मिट जाता रंग भले
ख़त्म नहीं होते पर ,ख़ुशबू के सिलसिले !
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