चाँदी के फूल

हरसिंगार-टहनी पर चाँदी के फूल खिले

जाने किन सुधियों में औचक ये होंठ हिले !

राहें थीं विजन-विजन

थका-थका बोझिल मन

ऐसे में , कैसे तुम अनाहूत आन मिले !

चिन्ताएँ भी चन्दन

नेह नूर भरे नयन

सिसक रही साँसों को,मस्ती के गान मिले!

बीत रहे जो भी दिन

प्यार पगे ये पल-छिन

इन्हीं में खो जायें , कैसे शिकवे -गिले !

झड़ते हैं फूल खिले

मिट जाता रंग भले

ख़त्म नहीं होते पर ,ख़ुशबू के सिलसिले !

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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