गज़ल-कोई नयी शुरुआत हो

आइए, कोई नयी शुरुआत हो

गाँठ मन की खुले ऐसी बात हो ।

लौट आयें गीतवाले दिन मधुर

रात आये जो ग़ज़ल की रात हो !

बात दिल की किस तरह मुमकिन वहाँ

तर्क की ज़द में जहाँ जज्बात हो।

तनहा-तनहा बिखरता है आदमी

निखरता जब कारवाँ के साथ हो ।

आदमी का आदमी में हो यक़ीं

दोस्ती की ओट में मत घात हो ।

रहें जल में , पर न जल का दाग़ लें

ज़िन्दगी अपनी कँवल का पात हो ।

सूखने है लगी रिश्तों की फसल

परस्पर के प्यार की बरसात हो !

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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