आइए, कोई नयी शुरुआत हो
लौट आयें गीतवाले दिन मधुर
रात आये जो ग़ज़ल की रात हो !
बात दिल की किस तरह मुमकिन वहाँ
तर्क की ज़द में जहाँ जज्बात हो।
तनहा-तनहा बिखरता है आदमी
निखरता जब कारवाँ के साथ हो ।
आदमी का आदमी में हो यक़ीं
दोस्ती की ओट में मत घात हो ।
रहें जल में , पर न जल का दाग़ लें
ज़िन्दगी अपनी कँवल का पात हो ।
सूखने है लगी रिश्तों की फसल
परस्पर के प्यार की बरसात हो !
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