गज़ल-बेपर हुए

पंख रहते हुए भी बेपर हुए
परिन्दे जो क़फ़स के अन्दर हुए !

पत्थरों को बना डाला देवता
पुजारी जैसे स्वयं पत्थर हुए !

कह रहा था गिद्ध चिंतित बाज से
‘ लोग देखो चंचुधर बेहतर हुए ! ‘

वफ़ा के वादे, मुहब्बत के क़रार
सधा मतलब और छू-मंतर हुए !

खुद न जिनको रहगुजर मालूम है
इन दिनों वे ही बड़े रहबर हुए !

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रचनाकार

Author

  • डॉ रवीन्द्र उपाध्याय

    प्राचार्य (से.नि.),हिन्दी विभाग,बी.आर.ए.बिहार विश्वविद्यालय,मुजफ्फरपुर copyright@डॉ रवीन्द्र उपाध्याय इनकी रचनाओं की ज्ञानविविधा पर संकलन की अनुमति है| इन रचनाओं के अन्यत्र उपयोग से पूर्व इनकी अनुमति आवश्यक है|

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